गुरू पूर्णिमा


भारत में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' अथवा 'व्यास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरु व्यास ,गुरु सुखदेव व् अन्य गुरुओ की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। यह पूजा ज्ञान, ध्यान और गुरु भक्ति की तरफ ले जाने वाली होती है। हिंदु परंपरा में गुरू को ईश्वर जैसा स्थान प्राप्त है। वास्तव में हम जिस भी व्यक्ति से कुछ भी सीखते हैंI वह हमारा गुरु हो जाता है। हमें उसका सम्मान अवश्य करना चाहिये। गुरु अपने शिष्य का सही मार्ग दर्शक होता है। वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का सही मार्ग बताने वाला होता है। गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाने का कार्य करता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।

श्रावण मास और भगवान शिव की पूजा


श्रावण मास हिंदू कैलेंडर का पांचवा महीना होता है। और यह मास जुलाई-अगस्त में आता है। श्रावण का पूरा मास ही भगवान शिव को अर्पित होता है। इस मास में भगवान शिव की पूजा-अर्चना सामान्य दिनों के दौरान की गई पूजा की तुलना में अधिक शक्तिशाली मानी जाती है। भारत में भगवान शिव के सभी मंदिरों और ज्योतिलिंगो में इन दिनों शिव भकत शर्द्धा से गंगाजल अभिषेक और पूजा-अर्चना करते है। इस लिये श्रावण मास में प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार के व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित कामनाओ की पूर्ति होती है। कई लोग श्रावण संक्रांति से भगवान शिव जी की पूजा करनी शुरू करते है और भाद्रपद संक्रांति तक पूजा करते है। श्रावण के मास में सोमवार के व्रत अत्यधिक शुभ माने जाते है। भगवान शिव ओम के लिये समर्पित है। भक्तों को श्रावण मास की पूजा और सोमवार को व्रत रखकर पूजा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। भगवान शिव की पूजा- अर्चना और व्रत करने से विशेष फल मिलता है और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पूजा में भगवान शिव को पंचामृत  दूध, दही, शहद, शक्कर और घी से स्नान कराकर सफेद फूल, बिल्वपत्र और भांग-धतूरा भी शिव पूजा में चढ़ाये जाते है।