भारत में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम
से मनाया जाता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' अथवा 'व्यास पूर्णिमा'
के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरु व्यास ,गुरु सुखदेव व् अन्य गुरुओ की विशेष
रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। यह पूजा ज्ञान, ध्यान और गुरु भक्ति की तरफ ले जाने
वाली होती है। हिंदु परंपरा में गुरू को ईश्वर जैसा स्थान प्राप्त है। वास्तव में हम
जिस भी व्यक्ति से कुछ भी सीखते हैंI वह हमारा गुरु हो जाता है। हमें उसका सम्मान अवश्य
करना चाहिये। गुरु अपने शिष्य का सही मार्ग दर्शक होता है। वह व्यक्ति को जीवन के हर
संकट से बाहर निकलने का सही मार्ग बताने वाला होता है। गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश
की तरफ ले जाने का कार्य करता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में
निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का
पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी
इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत
और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों
में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले
लगते हैं।