वैदिक ज्योतिष में, कुछ भी व्यर्थ और बेमतलब नहीं
है,क्योंकि यह एक पारंपरिक ज्ञान है। कोट चक्र गोचर की भविष्यवाणी तकनीकों में से एक
है। कोट चक्र को दुर्गा चक्र के नाम से भी कहा जाता है। लेकिन छात्र और विशेषज्ञ समान
रूप से कोटा चक्र का विश्लेषण करने से बचते हैं। क्योंकि इसकी जटिल संरचना और आंशिक
रूप से समझ की कमी के कारण।
प्राचीन काल में कोट चक्र का प्रयोग एक राजा युद्ध
में विजय प्राप्त करेगा या नहीं? या युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए राजा को किस
समय हमला करना चाहिए? जैसे प्रशनो का उतर जानने के लिए गोचर के ग्रहो का अध्ययन कोट
चक्र के दुयारा किया जाता था। वास्तविक में इसका महत्व बहुत अधिक है।
कोट चक्र अभिजीत नक्षत्र को मिला कर 28 नक्षत्रो
से बना है। कोट चक्र एक के अंदर एक तीन वर्ग बनाने के बाद बाहरी भाग के उत्तर पूरब
(ईशान कोण) पर जातक का जन्म नक्षत्र कृतिका लिखे। यह कोट चक्र या दुर्गा चक्र का आरम्भिक
बिंदु कहलाता है। जन्म नक्षत्र लिखने के बाद अन्य नक्षत्रो को इस प्रकार लिखे कि तीन
नक्षत्र उप मार्ग (प्रवेश मार्ग) पर और चार नक्षत्र मुख्य मार्ग (निकास मार्ग) पर आये।
उतर पूर्व दिशा उप मार्ग (प्रवेश मार्ग) से आरम्भ करते हुए कृतिका, रोहिणी और मृगशिरा
तीन नक्षत्रो को अंदर के भागो की तरफ लिखे। और उसके बाद आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और
अश्लेशा चार नक्षत्रो को पूर्व दिशा की तरफ मुख्य मार्ग (निकास मार्ग) पर कोट के बाहरी
भाग की तरफ लिखे। इसी प्रकार से आगे के बाकी नक्षत्र अन्य दिशाओं में 28वे नक्षत्र
तक लिखे। अभिजीत नक्षत्र का 28 नक्षत्रो में प्रयोग हुआ। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र धनु राशि
के 26 डिग्री 40' से मकर राशि में 06 डिग्री 40' तक है। उसके बाद अभिजीत नक्षत्र 06
डिग्री 40' से 10 डिग्री 53' 20" तक है। उसके बाद श्रवण नक्षत्र मकर राशि के 10
डिग्री 53' 20" से मकर राशि में 23 डिग्री 20' तक होता है।
किसी भी व्यक्ति के जीवन में गोचर के ग्रहो की स्थिति
को समझने और शुभ-अशुभ समय को जानने के लिए कोट चक्र का प्रयोग कर सकते है। जैसे :-
शारीरिक और मानसिक कषट, दुर्घटना, अस्वस्थता,मृत्यु ,स्वास्थय लाभ, विवाद का परिणाम,
कोट केस दाखिल करने का सही समय जानना आदि। ऐसा कोई भी काम जो किसी एक के साथ ही सम्बन्ध
रखता हो।